Antarvasna, kamukta जिस कंपनी में मैं नौकरी करता था उस कंपनी का दिवालिया घोषित हो चुका था परंतु यह बात मैंने अपनी पत्नी और अपनी बूढ़ी मां को नहीं बताई थी। घर में मेरे कंधों पर ही सारी जिम्मेदारी थी इसलिए मैं नहीं चाहता था कि मैं उन्हें इस बारे में बताऊँ। मैं अपने ऑफिस से घर लौटा तो देखा मेरी मां और पत्नी साथ में बैठे हुए थे वह दोनों रात के खाने की तैयारी कर रहे थे तभी मैं अपना उतरा हुआ मुंह लेकर अपनी मां और अपनी पत्नी के पास बैठ गया। मेरी पत्नी मुझे कहने लगी आज आप काफी गुमसुम से दिखाई दे रहे हैं आप बिल्कुल भी बात नहीं कर रहे है। मेरा ध्यान सिर्फ मेरी नौकरी पर था जो कि अब कुछ दिनों बाद मेरे हाथ से जाने वाली थी हमारे ऑफिस के कई लोग अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे थे और अब वह बेरोजगार की श्रेणी में आकर खड़े हो चुके थे।
मेरी भी स्थिति कुछ दिनों बाद यही होने वाली थी मैंने अपनी पत्नी को जवाब देते हुए कहा नहीं तो ऐसी कोई भी बात नहीं है। मेरी पत्नी मंजू मुझे कहने लगी जरूर कोई बात तो है तभी मेरी मां बोल उठी बेटा यदि कोई बात है तो बताते क्यों नहीं। मैंने अपनी मां से कहा अरे मां ऐसी कोई भी बात नहीं है बस वह रास्ते में एक व्यक्ति से मेरा झगड़ा हो गया था तो उसी के चलते थोड़ा मूड ठीक नहीं है। मेरी पत्नी कहने लगी मैं आपका मूड अभी फ्रेश कर देती हूं और आपको अभी गरमा गरम चाय ला कर देती हूं। मंजू रसोई में चली गई और वह जब रसोई में गई तो मेरे लिए गरमा गरम चाय बनाकर ले आई चाय इतनी गर्म थी की मैं चुस्की लेकर पी रहा था लेकिन मेरा ध्यान अब भी मेरी नौकरी के ऊपर ही था जो कि कुछ दिनों बाद छूटने वाली थी। इतने वर्षो की मेहनत का यही सिला मिलने वाला था मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि कभी मेरे जीवन में ऐसा संकट भी पैदा हो जाएगा। मेरी ढलती हुई उम्र अब इस ओर इशारा कर रही थी कि कैसे मैं और मेरी पत्नी अपना जीवन काटेंगे मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे इस स्थिति से लड़ने के लिए क्या करना चाहिए। अगले दिन जब मैं ऑफिस में गया तो कुछ और लोगों की भी शक्लें उतर चुकी थी वह लोग मुझे कहने लगे कि भैया अब तुम भी अपने लिए कोई नौकरी ढूंढ लो। मैंने भी अपने लिए दूसरी नौकरी ढूंढने का बंदोबस्त तो कर लिया था लेकिन अब भी मुझे लगता नहीं था कि कोई नौकरी इतनी जल्दी मिलने वाली है।
मैंने अपने जितने भी परिचित हैं उन सब को मैंने अपना बायोडाटा भेज दिया था लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया था और आखिरकार जिसका मुझे डर था वही हुआ। मेरी नौकरी अब जा चुकी थी और मेरे पास कोई दूसरी नौकरी भी नहीं थी एक महीने तक तो मैंने अपनी तनख्वाह से घर का खर्चा चला लिया लेकिन अब पैसे भी खत्म होने लगे थे और दूसरी नौकरी के लिए मैं पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन अब तक नौकरी नहीं मिली थी। मैं सुबह के वक्त निकल जाता मेरी पत्नी को यही लगता था कि मैं अभी नौकरी कर रहा हूं परंतु ऐसा नहीं था मेरी नौकरी अब जा चुकी थी और मेरे पास कोई काम भी नहीं था। बैंक में जमा पैसे भी अब धीरे-धीरे खत्म होने लगे थे क्योंकि महंगाई के दौर में पैसों का कुछ पता ही नहीं चलता था। मुझे अपने फिक्स डिपॉजिट को भी बैंक से तोड़ना पड़ा मुझे कुछ समझ नहीं आया कि मुझे क्या करना चाहिए ऐसी स्थिति में मेरे पास शायद कोई भी जवाब नहीं था और ना ही मेरे पास कोई दूसरा रास्ता था मैं बहुत ही ज्यादा परेशान हो चुका था। अब मेरे पास घर चलाने के लिए भी पैसे नहीं थे थक हारकर मैं अपने घर में बैठा हुआ था तो उस दिन मुझे मेरे दोस्त छगन का फोन आया। छगन एक पुरानी कंपनी में काम करता था लेकिन वहां पर तनख्वाह कम थी और काम काफी ज्यादा था मैंने छगन से कहा कोई बात नहीं दोस्त मैं वहां पर काम कर लूंगा। छगन ने मुझे कहा तुम मुझसे मिलने के लिए आ जाना, मैं छगन से मिलने के लिए अगले दिन चला गया। मैं जब उससे मिलने के लिए गया तो छगन ने मुझे अपने बॉस से मिलवाया बॉस बड़े ही निहायती और गिरे हुए इंसान प्रतीत हो रहे थे।
उनकी शक्ल देख कर मुझे लगा नहीं कि वह मुझे नौकरी पर रख लेंगे परंतु उन्होंने मेरे सामने ना जाने कितनी ही शर्ते रखी मेरी मजबूरी थी जो मुझे वहां पर नौकरी करनी पड़ी। मैंने नौकरी के लिए हां कह दिया मेरी तनख्वाह भी अब बहुत कम थी लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता ना था मैं वहीं पर नौकरी करने लगा था। आए दिन अपने बॉस की डांट से मैं तंग आने लगा और मैं सोचने लगा कि मैं नौकरी छोड़ दूं लेकिन मुझे छगन कहने लगा दोस्त इस वक्त तो तुम्हें कहीं नौकरी नहीं मिलने वाली और यदि तुमने ऐसा सोचा भी तो तुम्हारा घर चलाना मुश्किल हो जाएगा। मुझे भी लगा कि छगन बिल्कुल सही कह रहा है इसलिए मैंने छगन की बात मान ली और मैं अब अपने काम पर ध्यान देने लगा था। मैं चाहता था कि कुछ ऐसा हो जाए जिससे कि मेरी स्थिति पूरी तरीके से बदल जाए लेकिन अब ऐसा हो पाना तो मुश्किल ही था शायद कोई चमत्कार ही होता जिससे कि मेरी स्थिति बिल्कुल बदल जाती लेकिन ऐसा भी संभव नहीं था मैं कोल्हू के बैल की तरह सुबह से शाम तक काम किया करता और शाम को थक हारकर घर आता। मेरी पत्नी को देखकर मुझे थोड़ी बहुत खुशी हो जाती थी और अपनी बूढ़ी मां को देखता तो मुझे लगता कम से कम मैं उनके लिए तो कुछ कर रहा हूं और इसी के चलते मैं अपने काम पर जाया करता था। मेरी आर्थिक स्थिति भी अब काफी कमजोर हो चुकी थी क्योंकि मेरी तनख्वाह कम थी लेकिन उतने ही पैसों में अब हमें घर चलाना पड़ रहा था। काफी समय से मैंने अपने लिए कुछ कपड़े भी नहीं खरीदे थे तो मेरी पत्नी कहने लगी आप अपने लिए कुछ कपड़े खरीद लीजिए।
मैंने अपनी पत्नी से कहा नहीं रहने दो अभी तो मेरे पास कपड़े हैं लेकिन वह कहने लगी कि नहीं आपको कपड़े ले लेना चाहिये। हम लोग उस दिन मेरे लिए खरीदारी करने के लिए गए मेरी पत्नी मंजू भी मेरे साथ थी और हम दोनों खरीदारी करते समय मोल भाव करते लेकिन महंगाई इतनी ज्यादा थी कि जितने पैसे मैंने अपनी जेब में रखे थे उतने में मैं सिर्फ मेरे लिए दो कमीज और एक पेंट ही ले पाया लेकिन मैं उतने में भी खुश था। मैंने अपने माँ के लिए भी साड़ी खरीद ली थी और जब हम लोग घर आए तो मैंने अपनी बूढ़ी मां को साड़ी दी। मैंने अपनी बूढ़ी मां के लिए साड़ी ली थी काफी समय हो गया था जब मैं उनके लिए एक साड़ी भी नहीं ले पाया था। साड़ी देखकर वह भी खुश थी और उनके चेहरे की मुस्कान से मेरे सारे दुख जैसे दूर हो गए थे। मैं भी अपने जीवन में खुश रहने की कोशिश करने लगा लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी परंतु उसके बावजूद भी सब कुछ पहले जैसा सामान्य करने की कोशिश करने लगा परंतु जब हमारे बोस की पत्नी को मैंने पहली बार देखा तो उसे देखकर मैं दिल ही दिल में सोचता काश यह मेरी हो पाती। मेरी किस्मत में लिखा था कि वह मेरी ही हो जाएगी और ऐसा ही हुआ। जब हमारे बॉस ने पहली बार मुझे अपनी पत्नी के पास भेजा और कहां कि घर से जाकर तुम उनसे कुछ पैसे ले आना तो मैं घर पर गया। जब मैं घर पर गया तो मैंने उनकी पत्नी ललिता से कहा साहब ने कहा था कि आप पैसे दे दीजिए तो उन्होंने जब मुझे पैसे दिए तो वह मेरे हाथ को पकड़ने लगी और उनकी मनमोहक अदाओं से मैं अपने आपको ना रोक सका।
मेरे अंदर भी जोश पैदा होने लगा लेकिन मैं उस वक्त कुछ ना कर सका परंतु जब भी बॉस को कुछ काम होता तो वह मुझे घर पर भेजते शायद यह बात ललिता ही उन से कहती थी क्योंकि उसके दिल में भी मेरे लिए आग लगी हुई थी। ललिता के कहने पर मैं जब घर पर जाता तो मुझे भी बड़ा अच्छा लगता अब वह मौका आ ही गया जब हम दोनों के बदन एक हो गए। ललिता ने पहली बार मेरे हाथों को अपने हाथों में लिया तो मैं ललिता की तरफ देख रहा था मैंने उसे अपने दिल की सारी बात बताई तो वह कहने लगी मैं तुम्हारी सारी हसरतों को पूरी कर दूंगी और तुम्हारी जितने भी जरूरते है उन्हें भी मैं पूरी कर दूंगी लेकिन आज तुम मेरी इच्छा पूरी कर दो। भला उसके जैसी हॉट बदन वाली महिला की इच्छा को कौन पूरा नहीं करता मैंने जब उसके बदन से कपड़े उतारने शुरू किए तो उसने पिंक कलर की जालीदार ब्रा पहनी हुई थी। उसे उतारते ही मैंने उसके बड़े स्तनों को अपने मुंह में ले लिया और उनसे मैंने दूध बाहर निकाल दिया।
वह भी पूरी तरीके से उत्तेजित होने लगी थी और जिस प्रकार से मैं ललिता के स्तनों को अपने मुंह में ले रहा था उससे वह भी पूरी चरम सीमा पर पहुंच गई और मुझे कहने लगी तुम अपने लंड को बाहर निकालो। मैंने अपने लंड को बाहर निकाला तो ललिता ने उसे मुंह के अंदर समा लिया और उसे वह सकिंग करने लगी। वह बड़े अच्छे सकिंग कर रही थी उसको बड़ा मजा आ रहा था जब ललिता की योनि के अंदर अपने लंड को घुसाया तो मेरा लंड पूरी तरीके से चिकना हो चुका था। जैसे ही वह ललिता की योनि के अंदर घुसा तो वह चिल्ला उठी उसके मुंह से आह आह की आवाज निकली। मैं बिल्कुल भी रह नहीं पा रहा था मैंने ललिता के दोनों पैरों को अपने कंधों पर रखा और उसे तेजी से धक्के देने लगा लेकिन उसकी गांड को जब मैंने अपने हाथ में पकड़ा तो उसकी गांड मारने का मुझे मन हुआ। मैंने अपने लंड को ललिता की गांड में घुसा दिया अब वह भी मुझसे अपनी गांड मरवाकर खुश थी। जिस प्रकार से मै ललिता की गांड मार रहा था उससे तो मुझे आनंद आ रहा था वह भी बहुत खुश थी आखिरकार वह समय आ गया जब हम दोनों की इच्छा पूरी होने वाली थी। मैंने जब ललिता की गांड मे वीर्य को गिराया तो वह खुश हो गई। उसने मेरी सारी जरूरतों को पूरा कर दिया है।