Kamukta, antarvasna मैं रिटायरमेंट के आखिरी पड़ाव में था बस कुछ वर्ष बाद मैं रिटायर होने वाला था लेकिन मेरे रिटायरमेंट से पहले मुंबई में मेरी पोस्टिंग हो गई। मुंबई में आना मेरे लिए अच्छा रहा मैं जब मुंबई में आया तो मैं सोचने लगा कि क्यों ना अपने बच्चों को भी मुंबई में ही बुला लूं इतने वर्षों तक वह मुझसे अलग रहे हैं। अब मुंबई में ही वह अपने काम को आगे बढ़ाएं मैं यही चाहता था इसीलिए मैंने अपनी पत्नी और अपने दोनों बच्चों को मुंबई में अपने पास बुला लिया। इतने वर्षों तक उनसे अलग रहने की वजह से मुझे थोड़ा एडजेस्ट करने में तकलीफ हो रही थी लेकिन धीरे-धीरे मुझे अब अच्छा लगने लगा। हम लोग सरकारी कॉलोनी में रहते थे वहां पर सब लोगों से हमारा परिचय होने लगा था और कॉलोनी के पास ही एक दुकानदार है उसका नाम मोनू है।
मोनू मुझे हमेशा कहता अरे दिवेदी जी आज आप बहुत अच्छे लग रहे हैं मैं उसे हमेशा कहता यार तुम भी इस उमर में मेरा क्यों मजाक बनाते रहते हो लेकिन वह तो मुझे हमेशा छेड़ा करता था मुझे भी मोनू की बात का कभी बुरा नहीं लगा। मुझे जो भी सामान घर के लिए चाहिए होता था वह सब मैं उसी की दुकान से लेकर जाता था। एक दिन हम लोग छत पर बैठे हुए थे उस दिन मेरी पत्नी सुलेखा मेरे साथ थी मैंने सुलेखा से कहा इतने वर्षों तक घर से अलग रहने के बाद तुम लोगों का साथ मिला तो बहुत अच्छा लगा। सुलेखा मुझे कहने लगी बच्चों की पढ़ाई की वजह से हमें एक दूसरे से अलग रहना पड़ा लेकिन अब बच्चों की भी पढ़ाई पूरी हो चुकी है और अब वह नौकरी भी करने लगे हैं मैं सोच रही थी कि हम लोग अब मुंबई में ही एक छोटा सा घर ले लेते हैं। मैंने सुलेखा से कहा सुलेखा यहां घर लेना इतना भी आसान नहीं है लेकिन फिर भी मैं कोशिश करता हूं कि यहां एक फ्लैट ले ही लूं ताकि हम लोग यहां रह सके। मेरे दोनों बच्चे चाहते थे कि अब वह लोग मुंबई में ही रहे और मुंबई में ही अपना भविष्य बनाएं क्योंकि वह दोनों नौकरी तो मुंबई में ही करने लगे थे और उन्हें मुंबई अब भाने लगा था। मुंबई की चकाचौंध में मेरे बच्चे भी खोने लगे थे उसके बाद मैंने भी फ्लैट ढूंढना शुरू कर दिया हमारे ऑफिस में एक कुमार साहब है मैंने उनसे कहा साहब क्या यहां पर कोई छोटा सा फ्लैट मिल जाएगा।
वह कहने लगे अरे दिवेदी जी आप क्या बात कर रहे हैं आपको तो मैं एक अच्छा फ्लैट दिलवा दूंगा। उनके साले का काम प्रॉपर्टी का ही था तो वह मुझे कहने लगे मैं आपको उससे मिलवा देता हूं आप उससे बात कर लीजिएगा। कुमार साहब ने मुझे उस से मिलवा दिया जब मैं उनके साले से मिला तो उसे देख कर मुझे बड़ा अजीब सा लगा उसके मुंह में गुटखा भरा हुआ था और वह क्या बोल रहा था मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था फिर भी मैंने उसकी बातें समझने की कोशिश की। उसने मुझे कहा कि मैं आपको एक अच्छा फ्लैट दिलवा दूंगा और कुछ ही दिनों बाद उसका मुझे फोन आया और वह मुझे एक फ्लैट दिखाने के लिए ले गया। वह फ्लैट मुझे अच्छा लगा मैंने सोचा क्यों ना फ्लैट ले लिया जाए मैंने उसे बुकिंग का कुछ पैसा दे दिया और अब यह फ्लैट मेरे नाम पर बुक हो चुका था। मैं अपनी पत्नी और अपने बच्चों को भी फ्लैट दिखाने के लिए लाया था वह लोग भी खुश हो गए और कहने लगे यह तो काफी अच्छा फ्लैट है और काफी बड़ा भी था तो सब लोग खुश थे। मैंने अगले दिन कुमार साहब का मुंह मीठा करवाया और कहा साहब आप की वजह से ही वह फ्लैट मिलना मुझे मुमकिन हो पाया है नहीं तो इतने बड़े शहर में एक अच्छा फ्लैट मिल पाना भी बहुत टेढ़ी खीर है। कुमार साहब कहने लगे हां दिवेदी जी तो फिर मैं किस दिन काम आऊंगा, उसके बाद हमने वह फ्लैट खरीद लिया। हम लोग सरकारी घर में रह रहे थे इसलिए मैंने वह फ्लैट किराए पर दे दिया था ताकि उससे कुछ पैसा आता रहे। कुमार साहब का साला जब भी मुझे मिलता तो वह हमेशा मुझे कहता रहता कि अगर कोई और भी हो तो मुझे बता दीजिएगा मैंने उसे कहा हां तुम्हें ही बताऊंगा तुम चिंता ना करो। मैं एक दिन मोनू की दुकान में खड़ा था मैंने मोनू से कहा मोनू मुझे टूथपेस्ट देना उसने मुझे टूथपेस्ट दिया मैंने अपने जेब से पैसे निकालकर मोनू को दिए तभी मेरे सामने एक व्यक्ति खड़े थे।
उन्होंने मुझे कहा आप के एस दिवेदी हैं ना मैंने उन्हें कहा हां साहब लेकिन मैंने आपको पहचाना नहीं आपका चेहरा तो मुझे कुछ जाना पहचाना लग रहा है लेकिन मुझे ध्यान नहीं आ रहा। उन्होंने मुझे याद दिलाते हुए कहा अरे मैं मनमोहन कुमार वर्मा आपके साथ लखनऊ में था आपने मुझे पहचाना नहीं मैंने उन्हें कहा अरे मनमोहन साहब इतने वर्षो बाद आपसे मुलाकात हो रही है मैं आपको वाकई में नहीं पहचान पाया। मैंने उन्हें गले लगाया और कहा आप यहां कैसे तो वह कहने लगे मेरा ट्रांसफर भी अब मुंबई में हुआ है और मैं अपनी फैमिली के साथ यहीं रह रहा हूं। मैंने उन्हें कहा आपको कितना समय हुआ तो वह कहने लगे मैं कल ही तो यहां आया हूं और अभी तो सामान ही शिफ्ट कर रहा था। लखनऊ में हम लोग 30 वर्ष पहले साथ में रहते थे उस समय मुझे कुछ ही वर्ष काम करते हुए हुए थे। मैंने वर्मा जी से कहा वर्मा जी आपने मुझे पहचान लिया और मैं आपको पहचान ना सका वर्मा जी कहने लगे चलिए आपको घर में चाय पिलाते हैं। मैंने वर्मा जी से कहा आपसे फिर कभी मिलने आएंगे और हम दोनों कुछ देर तक बात करते रहे फिर वह चले गए और मैं भी अपने घर आ गया। जब मैं घर पहुंचा तो मैंने अपनी पत्नी को बताया मेरे साथ 30 वर्ष पहले मनमोहन कुमार वर्मा जी लखनऊ में काम करते थे आज वह मुझे मिले वह भी मुंबई में ही आ चुके हैं उनका ट्रांसफर भी मुंबई में ही हुआ है।
वह मुझे कहने लगी चलिए यह तो अच्छा है की आप अपने पुराने मित्र से मिल गए। मनमोहन वर्मा जी ने भी अब ऑफिस ज्वाइन कर लिया था और हम दोनों अक्सर साथ में ही ऑफिस से आया करते थे। वर्मा जी कहने लगे आज आप हमारे घर पर चलिए आज आप मना नहीं कर पाएंगे मैं भी उनकी बात को मना ना कर पाया और उनके साथ उनके घर पर चला गया। जब मैं उनके घर पर गया तो उन्होंने मुझे अपने बच्चों से मिलवाया उनके दो ही बच्चे हैं एक लड़का और एक लड़की लड़के का नाम पवन है और लड़की का नाम अनामिका है। उन दोनों ने मुझसे काफी बात की और मुझे उन दोनों से बात कर के अच्छा लगा मैंने उन्हें कहा कि तुम भी कभी हमारे घर पर आओ। वह दोनों कहने लगे ठीक है अंकल हम आपके घर पर आएंगे और मैंने उनके घर पर एक गरमा गरम चाय की प्याली पी और उसके बाद मैं अपने घर चला गया। मेरी पत्नी पूछने लगी आज आप काफी देर से आ रहे हैं मैंने उसे बताया मैं वर्मा जी के यहां पर चला गया था और वहीं पर थोडी देर हो गई। मेरी पत्नी कहने लगी कभी आप उन्हें डिनर पर इनवाइट कीजिए मैंने उसे कहा फिर इसमें देरी कैसी मैं कल ही उन्हें डिनर पर इनवाइट कर लेता हूं। अगले ही दिन मैंने वर्मा जी के परिवार को अपने घर पर डिनर के लिए इनवाइट किया और वह लोग हमारे घर पर डिनर के लिए आये इसी बहाने वर्मा जी के परिवार और मेरे परिवार का मेल मिलाप हो पाया। हम दोनों के परिवार एक दूसरे के परिवार से मिलकर काफी खुश थे और साथ मे एक अच्छा समय बिता पाए। मै एक दिन मोनू क दुकान पर गया मोनू मुझसे मुस्कुरा कर बात कर रहा था, वह कहने लगा दिवेदी जी आजकल आप दुकान में नहीं आते।
मैंने उसे कहा आजकल ऑफिस में बहुत काम रहता है इसलिए आना नहीं हो पाता लेकिन उसी बीच अनामिका वहां से गुजर रही थी। मोनू मुझसे अनामिका के बारे मे कहने लगा, मुझे जब अनामिका के बारे मे पता चला। मैंने मोनू से अनामिकि के बारे मे पूछा उसने मुझे बताया अनामिका ना जाने किस किस के साथ सेक्स संबंध बनाती है। मैं यह सोचकर हैरान रह गया कि अनामिका ऐसा क्यों करती है। एक दिन मैंने इस बारे मे अनामिका से पूछ लिया वह कहने लगी अंकल आप यह बात पापा को मत बता देना। मैंने कहा नहीं तुम्हारे पापा को नहीं बताऊंगा लेकिन तुम मेरा ख्याल रखो और मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगा। वह कहने लगी ठीक है मैं आपको फोन करती हूं उसने मुझे फोन किया और कहा कि आज आप मुझे कहां घुमाने ले जा रहे हैं। मैंने उसे कहा मैं तुम्हें आज होटल में ले चलता हूं जब हम दोनो होटल मे गए और जब मैंने अनामिका के कपडे उतारे तो वह मुझे कहने लगी मुझे आपसे शर्म आ रही है। मैंने उसे कहा शर्माने की बात नहीं है मैंने उसके स्तनों को अपने मुंह में ले लिया और उन्हें चूसने लगा। उसने भी मेरी बाल वाली छाती को अपनी जीभ से चाटा और कहने लगी जिनकी छाती में बाल होते हैं वह मुझे बहुत पसंद है।
यह कहते हुए उसने काफी देर तक मेरी छाती को चाटा जब उसने मेरे लंड को अपने मुंह में ले लिया तो मुझे भी मजा आने लगा वह अच्छे से मेरे लंड को अपने मुंह के अंदर बाहर करने लगी। जब मैंने उसकी योनि के अंदर अपनी उंगली को डाला तो वह मुझे कहने लगी मुझे बड़ा दर्द हो रहा है। उसकी गीली हो चुकी चूत के अंदर अपने लंड को प्रवेश करवा दिया और जैसे ही मेरा लंड उसकी योनि में प्रवेश हुआ तो उसे बहुत मजा आया और वह चिल्लाने लगी लेकिन उसके मुंह से जो मादक आवाज निकलती उससे वह मेरा बड़ा साथ दे रही थी। कुछ देर बाद वह मेरे लंड के ऊपर बैठ गई और अपनी चूतडो को हिलाने लगी जब वह अपनी चूतडो को हिलाती तो मुझे बड़ा मजा आता। काफी देर तक वह ऐसा ही करती रही मैंने उसे बड़ी तेजी से धक्के दिए उसके बाद जब मैंने अपने वीर्य को उसके मुंह में गिराया तो उसने वह अंदर निगल लिया। मैंने अनामिका से कहा अब क्या करना है तो वह कहने लगी आप मुझे घर छोड़ दीजिए और यह बात किसी को मत बताना। मैंने उसे कहा ठीक है मैं तुम्हें छोड़ देता हूं लेकिन तुम मुझे खुश करती रहोगी वह कहने लगी हां अंकल मैं आपको खुश करती रहूंगी।