आज का सबसे बड़ा सवाल यह है कि हम कैसे जियें ? और उससे भी बड़ी समस्या यह है कि ऐसा क्या करे जिससे जीना असं हो जाये | दोस्तों ये दो सवाल बड़े ही कठिन है क्यूंकि इनके इर्द गिर्द पूरा जीवन घूमता रहता है और इनसे आज तक कोई नहीं बाख पाया | मुझे भी लगता था कि अगर मन से हर चीज़ को करो तो राह आसान हो जाती है | पर इसके अलावा भी हमे बहुत सारी चीजों की ज़रूरत होती ही जिससे हम सब कुछ कर सकते हैं | देखिये लेखक जो होता है वो समाज कओ आइना दिखता है पर इससे भी बड़ी विडंबना तो यह है उसका खुद कका जीवन अंधकार में होता है | एक लेखक बड़ी मेहनत करके जीवन यापन करता है पर अगर उसे उसकी कला का कद्रदान नील जाये तो उसका सारा जीवन संवर जाता है | मुझे भी ऐसी ही किसी चीज़ की तलास्श थी | घर में मेरी बीवी थी और बच्चे थे जो पढ़ते थे | हमारे घर में बहुत तंगी का आलम रहता था क्यूंकि मुझे आये दिन किसी न किसी से मुह की खानी पड़ती थी | किसी को कहानी पसंद नहीं आती थी तो कोई मिलता ही नहीं था | पर मेरी बीवी और बच्चे मेरी हिम्मत थे क्यूंकि वो हमेशा मेरी तारीफ करते और जैसे तैसे हर चीज़ में रम जाते | अगर कोई सच्चा हमसफ़र हो तो जिंदगी हसीं बन जाती है और सफ़र तो बस नाम का ही रह जाता है | मुझे करीब 5 वर्ष हो गये थे लोगों के चक्कर काटते हुए पर एक फूटी कौड़ी न मिली | पर मेरा घर चल जाता था क्यूंकि जहाँ भी कवि सम्मलेन होता था या मुशाइयरा होता था | पैसे कम मिलते थे पर घर का चूल्हा जलता था और दो शेर का खाना भी हो जाता था | एक बार की बात में आपसे साझा करना चाहता हूँ जो की मेरे साथ भिंड में हुयी थी | यह जगह मध्य परदेस में है और यहाँ ज़्यादातर लोग आपराधिक प्रवत्ति वाले ही थे | यहाँ एक बड़ा कवी सम्मलेन होने वाला था जो की ठाकुर साहब करवा रहे थे | ठाकुर साहब मतलब सरकार जी | उनकी हुकूमत चलती थी यहाँ पे | पर वो किसी के साथ गलत नहीं करते थे |
मुझे निमंत्रण मिला और उसमे हज़ार रुपये थे और लिखा था आपको यहाँ कविता पढने आना है | मैंने भी झट से हज़ार रुपये भाग्यवान को दिए और गज्जू मेरा बड़ा लड़का उससे कहा ए गुड्डू अम्मा का ध्यान रखना ठीक है | उसने कहा ठीक है बापू और फिर उसने मुझसे पूछा बापू एक दिन हम अच्छी जिंदगी जियेंगे न | मेरी आँखे नाम हो गयी और मैंने कहा ” डाल पे बैठी चिड़िया को अपने पंखों पर भरोसा होता है आ जाये लाख आंधी तूफ़ान पर अपने जिगर में हिम्मत भर फिर देख क्या होता है ” | वो भी हस दिया और कहा ठीक है बापु अब आप जाओ | मैंने तैयारी करली और अपना झोला उठाया और निकल पड़ा अपने सफ़र पे | बस मिली और तब किराया 30 रूपया था | मैं पहुँच गया भिंड और रात के एक बजे थे उस समय | कुछ लोगों ने मुझे घेर लिया और कहा जो भी है निकाल दे | मैंने कहा खुद ही लेलो भाई और वो लोग मेरे पास आने लगे | उन्होंने जैसे ही मेरी तलाशी ली उन्हें एक पायजामा और कुरता मिला और ५० रुपये मिले और कुछ किताबे | तो उनमे से एक ने मुझसे पूछा क्यों रे क्या करता है भिखारी | तो मैंने कहा मैं एक लेखक हूँ मित्र तो वो सब दूर हट गये और मुझे गले से लगाके कहा पगले अब रुलाएगा क्या | ये ले तेरा सामान और बोल कहाँ जाना है | देखा दोस्तों एक लेखक की मजबूरी डकैत भी समझ जाते है | पर उस वक़्त शायद उनमे से एक कुछ लेने गया था और सबसे बोला था भाई को कहीं जाने मत देना | थोड़ी देर बाद वो वापस आया और कहा भाई ये लो कुछ रोटियाँ है आप खालो भूखे होगे तो मैंने कहा नहीं मित्रों हम सब बाँट के खायेंगे | इतना सुनते ही सब रोने लगे और फिर हमने रोटी खाई और दारु का इंतज़ाम भी था | रोटी के साथ अगर देसी दारु हो तो मज़ा ही आ जाता है | हम सब नशे में थे और फिर एक ने पुछा भाई आप यहाँ किसके यहाँ आये हो तो मैंने उनको बताया ठाकुर साहब के यहाँ जाना है कवि सम्मलेन है | उन्होंने कहा भाई आप चिंता मत कर हम सुबह आपको छोड़ देंगे | और हमलोग वही बीहड़ में सो गये फिर सुबह जब आँख खुली तो मैं ठाकुर साहब की हवेली के बाहर मैदान में था |
मैंने मन ही मन उनको धन्यवाद दिया और सोचा काश वो लोग मेरी कविता सुनने के लिए आ जाये | तम्बू गड चुका था मंच सज चुका था और कई नामी गिरामी कवि और कवियत्री वह पे आये हुए थे | मैंने सोचा पहले नाहा लिया जाए और उसके बाद देखेंगे की क्या इंतेज़ाम है | मैंने पास के ही नल के नीचे नहाया और सोचा की नाश्ता कर लेते है | पर अगर मैं नाश्ता करता तो घर जाने के लिए पैसे नहीं बचते इसलिए भूखा ही रहा | पर एक घंटे बाद वो सारे लोग वापस आये और कहा भाई नाश्ता लाये हैं आपके लिए मैं उनको देखककर बड़ा प्रसन्न हुआ और खुदा का शुक्रिया किया | ” लाख मुसीबते दे देना ए खुदा पर मेरी फ़िक्र करने वाले यार मुझसे मत छीनना” | फिर उन्होंने कहा भाई अब आपसे रात में मिलेंगे अभी रुके तो दरोगा पकड़ लेगा | फिर मैंने अन्दर की तरफ रुख किया और जायजा लेने लगा | अन्दर जाते ही मेरा सामना हुआ भारतेंदु दुखभंजन सिंह साहब से जो हमारे समय के बहुत बड़े शायर थे | उन्होंने मुझे देखा और कहा नए लगते हो और मैंने उनका चरण स्पर्श किया और आशीर्वाद लिया | मैंने गौर नहीं किया था की एक कवियत्री जो की नयी उम्र की थीं वो मुझे देख रही थी | वो राजा महाराजा के खानदान से तालुकात रखती थीं | उनका नाम रुखसार अम्बर था और उनकी कविता में वीर और हास्य रस दोनों था | फिर मैंने सोचैनके बीच मेरा क्या काम तो मैं एक कोना पकड़ के चुपचाप खड़ा हो गया | तभी गलियारों की महफ़िल से एक आवाज़ आई और मुझे समझते देर न लगी की ये अपने राहत फरुक्काबादी हैं | उन्होंने मुझे सुना था और वो यहाँ सबके लिए आये थे | उन्होंने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा कि अगर व्यंग और संजीदा शायरी का नाम आएगा तो ये लड़का काफी ऊपर जाएगा | रुखसार अम्बर भी वहीँ थी और वो ये सब बहुत गौर से सुन रहीं थी | सबके जाने के बाद वो मेरे पास आई और कहा आप बड़े छुपे रुस्तम मालुम पड़ते हैं हमे अपना जलवा नहीं दिखायेंगे | तो मैंने कहा रुखसार जी अभी सुनाये देते हैं एक लतीफा आपको | उन्होंने कहा नहीं हमे आपका जलवा अकेले में देखना है | मैं समझ गया ये क्या चाहती हैं |
मैंने पहले तो सोचा कि अपना काम निपटा लेते हैं बाद में इसको तारका देंगे | सम्मलेन शुरू हुआ और मेरी बारी आई और जैसे ही मैंने पहला व्यंग मारा सारेकवि उठकर तालियाँ बजने लगे | दो घंटे तक मैंने अपनी प्रस्तुति दी और ठाकुर साहब ने प्रसन्न होकर मुझे एक लाख की राशि नगद दे दी | फिर रात को हमारा खाना वहीँ था पर मुझे रुखसार एक कमरे में ले गई और बिना कुछ बोले मेरे कपडे फाड़ दिए और अपने कपडे भी उतार दिए | मेरा लंड बालों से भरा था पर उसने फिर भी उसे चूसना शुरू कर दिया और इतना चूसा की लाल पड़ गया | फिर उसने अपने कपडे भी फाड़ दिए और कहा इस नाचीज़ की चूत को खा जाओ | मैंने उसकी चूत को मजबूरी में चाटा और उसके बाद जैसे ही उसने मुझे अपना माल पिलाया मुझे जोश आ गया | उसके बाद मैंने उसे बिस्तर पे पटका और कहा बस अब आपको हमारे लंड की ताकत से रूबरू करवाता हूँ | उसके बाद मैंने उसे उल्टा किया और उसकी गांड में अपना लंड डाल दिया और वो उमम्म्म्म आआआअह ऊऊओह्हह्हह करने लगी थी | बेगम जान की गांड फट चुकी थी और मैं तो पागल घोड़े की तरह्ह उसे बस चोदे जा रहा था | वो लगातार आह… ऊह्ह्ह्हह… उईई…. करती जा रही थी और मैं था की रुकने का नाम नही ले रहा था | बीच बीच में मै उसके चूतडों पर थप्पड़ भी मार दे रहा था | फिर मैंने उसकी गांड में अपना मुठ पेल दिया पर फिर भी मेरा खड़ा था | मैंने उसे घोड़ी बनाया और इस बार उसकी चूत को फाड़ दिया और हर बार की तरह मुठ उसकी चूत में | उसके बाद हम साथ में लेटे | वो मुझसे बड़ी खुश थी और उसने मुझे अपना हार और दो किलो सोना दिया | मुझे फिर से जोश आया और मैंने फिर से उसकी को चोदा | इस बार वो आअह्ह्ह्ह उम्म्म्मम्म्म्मऊऊउम्म्म्म करती रही और रात भर चुदती रही | मैं इस बार करोडपति बनके लौटा था घर और इस चीज़ को मैं कभी भूल नहीं पाउँगा |
दोस्तों अमीर तो बहुत लोग बने होंगे लेकिन मेरी तरह बनने वाले बहुत कम ही होंगे | आप लोगों को इस कवी की कहानी कैसी लगी जरुर बताइयेगा |