Hindi sex story, antarvasna मैं घर की छत पर था मेरा मोबाइल नीचे ही रह गया था मुझे अपने दोस्त को जरूरी फोन करना था तो सोचा मोबाइल अपने बेडरूम से ले आऊं। मैं अपने बेडरूम में गया तो वहां से मैंने मोबाइल लिया और अपने दोस्त को फोन किया काफी समय बाद उससे बात कर के अच्छा लगा और ऐसा लगा जैसे कि इतने समय बाद उससे बात करना मेरे लिए बड़ा ही अलग अनुभव था। मैंने जब फोन रखा तो मेरे दादाजी पीछे से आए और मुझे अपनी कड़क आवाज में कहा अमन बेटा तुम क्या कर रहे हो मैंने उन्हें कहा दादा जी कुछ नहीं बस अपने पुराने दोस्त से बात कर रहा था। दादा जी कहने लगे अच्छा तो तुम अपने पुराने दोस्त को फोन कर रहे थे मैंने दादा जी से कहा हां दादा जी मैं अपने दोस्त को फोन कर रहा था क्या आपको कोई काम था।
वह कहने लगे नहीं बेटा मुझे कुछ काम नहीं था बस रूम में बैठा हुआ था तो सोचा थोड़ा सा छत पर टहल लूँ। मैंने दादा जी से कहा तो फिर चलिए मैं आपको पार्क में ले चलता हूं दादा जी ने कहा मै अपनी शॉल ले लेता हूं उसके बाद हम लोग पार्क में चलते हैं। दादाजी ने शॉल ले लिया और उसके बाद हम लोग वहां से पार्क में चले गए दादाजी धीरे-धीरे आ रहे थे और मैं उनका हाथ पकड़े हुआ था दादा जी का हमारे मोहल्ले में बड़ा ही रुतबा था सब लोग उनकी इज्जत करते हैं। जब मैं उन्हें पकड़ कर ला रहा था तो सामने से एक बुजुर्ग व्यक्ति आये और उन्होंने दादा जी से कहा अरे सिन्हा साहब आज आप काफी दिनों बाद दिख रहे हैं। दादा जी ने भी अपने चश्मे को थोड़ा सही किया और ध्यान से उनके चेहरे की तरफ देखा तब दादा जी को पहचान में आया कि यह तो उनके परिचित शुक्ला जी हैं उसके बाद तो जैसे वह दोनों अपनी पुरानी बातें करने लगे। मैं वहां खड़ा होकर उन दोनों की बातें सुनता रहा हालांकि मैं काफी बोर भी हो रहा था लेकिन उसके बावजूद भी मुझे दादाजी के साथ रुकना पड़ा। हम लोग वहां से पार्क में चले गए दादा जी और मैं साथ में ही बैठे हुए थे वह मुझसे कहने लगे और बेटा तुम आगे क्या करने की सोच रहे हो।
मैंने दादा जी से कहा मैंने अभी तक तो ऐसा कुछ सोचा नहीं है लेकिन मैं फिलहाल दिल्ली में ही रहना चाहता हूं दादा जी मुझसे अपनी पुरानी यादों को ताजा करने लगे। वह कहने लगे बेटा कैसे मैं एक छोटे से गांव से आया था और उसके बाद दिल्ली में इतनी मेहनत करने से आज यह मुकाम हासिल हुआ लेकिन तुम्हारे पिताजी और चाचा जी के बीच में कुछ ठीक नहीं है। मुझे लगता है कि कहीं वह दोनों एक दूसरे से बिजनेस को अलग ना कर ले मैंने दादा जी से कहा दादा जी आप चिंता मत कीजिए ऐसा नहीं होगा। मेरे चाचा जी की दो लड़कियां हैं लेकिन उसके बावजूद भी वह मेरे पिताजी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं मानते यह बात मेरे दादाजी को भली-भांति मालूम है और मुझे भी यह बात मालूम है लेकिन हम लोग कुछ कह नहीं सकते क्योकि वह भी हमारे परिवार का ही हिस्सा है। दादा जी उस दिन मुझे अपनी पुरानी यादों को ताजा कर रहे थे कि अचानक से दादाजी की छड़ी से एक लड़की टकराई और वह सीधा ही नीचे गिर पड़ी। वह इतनी तेजी से नीचे गिरी की उठते ही उसने दादा जी को अनाप-शनाप कहना शुरू कर दिया मैंने उसे कहा तुम देख रही हो दादा जी की उम्र कितनी ज्यादा है उसके बाद भी तुम उन्हें ही गलत कह रही हो। मेरे दादाजी ने कहा बेटा जाने दो मेरी ही गलती थी दादाजी ने उस लड़की को सॉरी कहा और वह वहां से चली गई मैंने दादा जी से कहा लेकिन आपने उसे सॉरी क्यों कहा आपको उससे माफी मांगने की जरूरत नहीं थी वह लड़की बड़ी ही गलत तरीके से बात कर रही थी। दादा जी मुझे समझाने लगे और कहने लगे बेटा ऐसा जीवन में कई बार हो जाता है लेकिन भलाई इसमें ही है कि उस बात को माफी मांग कर खत्म कर देना चाहिए। उन्होंने मुझे काफी कुछ समझाया उसके बाद मैं उन्हें लेकर घर चला आया और कुछ दिनों बाद पिताजी और चाचा के बीच में झगडे शुरू हो गए।
इस बात से दादा जी की तबीयत खराब होने लगी और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा मैं उस वक्त पिता जी के साथ ही था दादाजी ने कहा बेटा तुम घर में बड़े हो और तुम पर ही अब सारी जिम्मेदारियां हैं। तुम्हें समझना चाहिए कि तुम्हें तुम्हारे छोटे भाई का ध्यान रखना है और उससे तुम्हे झगड़ा नहीं करना चाहिए। दादाजी के समझाने पर पिताजी तो मान गए लेकिन चाचा जी अभी नहीं माने थे और पिताजी उनसे कम ही बात किया करते थे। धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा और दादा जी को भी अब एहसास हो चुका था कि वह जायदाद के दो हिस्से कर दें ताकि आगे चलकर कोई भी ऐसी समस्या ना हो जिससे कि पिताजी और चाचा के बीच में झगड़ा होने की संभावनाएं बन जाए। दादा जी भी थोड़ा बहुत ठीक हो चुके थे लेकिन अभी वह दवाई के सहारे ही चल रहे थे डॉक्टर ने उन्हें आराम करने के लिए कहा था परंतु दादाजी चाहते थे कि वह जायदाद का हिस्सा कर दें ताकि कल को कोई समस्या ना आन पड़े। उन्होंने जायदाद का हिस्सा कर दिया चाचा जी भी अपने परिवार के साथ अब अलग रहने लगे थे और वह सिर्फ दादाजी से मिलने के लाया करते थे। हालांकि पापा और चाचा साथ में काम किया करते थे लेकिन उन दोनों के बीच में बिल्कुल भी नहीं बनती थी जिस वजह से कई बार उन दोनों के झगड़े भी होने लगे थे। अब जायदाद का हिस्सा हो चुका था इसलिए सब कुछ ठीक था लेकिन दादा जी ने मुझे कहा अमन बेटा तुम बहुत समझदार हो और अपने पिताजी को तुम समझाते रहना।
मैंने दादा जी से कहा आप मुझसे यह किस प्रकार की बातें कर रहे हैं वह मुझसे बड़े हैं और मैं उन्हें कैसे समझा सकता हूं। दादा जी कहने लगे बेटा इसमें बड़े छोटे का सवाल नहीं है तुम अपने पिताजी को समझा सकते हो और यदि वह कभी गलत हो तो तुम्हें उन्हें कहना चाहिए। इसी बीच मैंने भी एक कंपनी में इंटरव्यू दिया और वहां पर मेरा सिलेक्शन भी हो गया जब मेरा सिलेक्शन हुआ तो मैं ज्यादा समय ऑफिस में ही रहता था और जब शाम के वक्त घर लौटता तो दादाजी मेरा इंतजार कर रहे होते थे। दादा जी से मेरा बहुत लगाव था लेकिन कुछ ही समय बाद उनकी तबीयत बिगड़ने लगी और एक दिन अचानक से उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु होने के बाद चाचा जी और पापा में बिल्कुल नहीं बनी और उन्होंने अपने बिजनेस को भी अलग कर लिया जिस वजह से बिजनेस में बहुत ज्यादा फर्क पड़ा और जो दादा जी चाहते थे वह कभी हो नहीं पाया। वह चाहते थे कि चाचा और पापा साथ में मिलकर काम करें लेकिन उन दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया था और अब वह अलग बिजनेस करने लगे थे लेकिन इसका असर बिजनेस में पड़ने लगा था। मैंने पापा को समझाया तो पापा कहने लगे तुम्हें इस बारे में नहीं मालूम तुम अभी छोटे हो लेकिन मुझे भी लगा की पापा और चाचा ने बहुत बड़ी गलती की है जो वह दोनों ने अपने बिजनेस को अलग कर लिया है। दादा जी ने अपनी मेहनत से वह बिजनेस खड़ा किया था और उसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी परंतु पापा और चाचा की वजह से सब कुछ खत्म होता जा रहा था। मुझे इस बात की बहुत चिंता थी लेकिन मैं ना तो चाचा जी से कह सकता था और ना ही पापा से मैं कुछ कह सकता था इसलिए मैं अपनी जॉब पर ही ध्यान देने लगा।
मुझे मेरे पिताजी और चाचा से ज्यादा कोई मतलब नहीं था मुझे तो इस बात का दुख था कि उन्होंने दादाजी की इज्जत को भी मिट्टी में मिला कर रख दिया था। वह दोनों एक दूसरे से झगड़ते रहते थे मै इन सब चीजों से परेशान था और कुछ दिनों के लिए में अकेले ही टूर पर निकल गया। वह टूर मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा टूर होने वाला था उस टूर के दौरान मेरी मुलाकात अंजली से हुई अंजली भी अकेले ही थी लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि वह अकेले क्यों घूमने आई है। जब मुझे पता चला तो हम दोनों ही साथ में रहने लगे कुछ दिनों तक हम दोनों साथ मे रहे। एक दिन रात के वक्त मैने अंजली के स्तनों को दबाना शुरू किया और उसके नरम होठों को देखकर मैं अपने आपको ना रोक सका। मैंने जैसे ही उसके होठों पर किस करना शुरू किया तो वह भी अपने आप पर काबू ना कर सकी और हम दोनों ने एक-दूसरे के साथ सेक्स करने के बारे में सोच लिया। उस रात हम दोनों ने एक दूसरे के साथ जमकर सेक्स का लुफ्त उठाया मैंने जब अंजलि की योनि के अंदर अपने लंबे लंड को प्रवेश करवाया तो वह चिल्ला रही थी और कहने लगी मुझे बहुत दर्द हो रहा है तुम धीरे-धीरे धक्के मारो लेकिन मैं तो उसे तेजी से धक्के दिए जाता। कुछ देर के बाद मैंने अंजली से कहा कि मुझे तुम्हारी गांड में अपने लंड को डालना है तो वह भी कोई आपत्ति नहीं जता पाई।
मैंने उसकी गांड के अंदर अपने लंड को प्रवेश करवा दिया जैसे ही मेरा मोटा लंड उसकी गांड मे गया तो उसको दर्द होने लगा। वह भी मुझसे अपनी चूतड़ों को मिलाने लगी मुझे बहुत मजा आने लगा काफी देर तक ऐसा ही चलता रहा जब हम दोनों ही पूरी तरीके से उत्तेजित हो गए तो मैंने उसे और भी तेज गति से धक्के देना शुरू कर दिया जिससे कि हम दोनों के शरीर की गर्मी में बढ़ोतरी होने लगी। वह मुझसे चूतडो को मिलाने लगी जब वह मुझसे अपनी चूतडो को मिलाती तो उसके मुंह से सिसकीया आती तो उससे हम दोनों ही पूरी तरीके से उत्तेजित हो जाते। काफी देर तक हम दोनों एक दूसरे के साथ मजे लेते रहे जब मेरा वीर्य अंजली की गांड में गिर गया तो वह खुश हो चुकी थी। तुमने अपने माल को मेरी गांड में गिरा दिया है लाओ कोई कपड़ा दे दो मैंने उसे अपना रूमाल दिया। उसने उससे मेरे माल को साफ किया उसके बाद हम दोनों एक दूसरे से बात करने लगे। मुझे उस वक्त पता चला की अंजलि तो तलाकशुदा है उसने मुझसे यह बात छुपाई थी लेकिन मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता की वह तलाकशुदा है।