Desi kahani, antarvasna मैं इस बात से बहुत खुश थी कि हमारे गांव में इस वर्ष भी मेला लगने वाला है। मैं एक छोटे से गांव की रहने वाली हूं और हमारा गांव बिहार में है हमारा गांव पटना से 5 घंटे के रास्ते पर है। मैं इस बात से खुश थी कि इस वर्ष भी हम लोग मेले में खूब धूम धड़ाका करेंगे हर साल की तरह हमारे गांव में मेला लगता है इस बार भी मेला लगने वाला था। मेले की पूरी तैयारियां हो चुकी थी मैं अपनी मां के साथ बैठी हुई थी तो मेरी मां मुझे कहने लगी मोनिका तुम इस बार के मेले में जाओगी। मैंने अपनी मां से कहा मां मैं बचपन से आज तक हर बार मेले में गई हूँ तो इस बार मैं कैसे मेला छोड़ सकती हूं। मेरी मां कहने लगी मोनिका कई बार तुम्हें देख कर लगता है कि जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तो तब मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी।
मेरी मां का मेरे प्रति बहुत लगाव है वह मुझे कहने लगी जब तुम छोटी सी थी तो मैं तुम्हारा हाथ पकड़कर तुम्हें मिले में घुमाने के लिए ले जाया करती थी लेकिन तुम मेले में काफी जिद करती थी जिस वजह से मुझे तुम्हारे लिए मेले से हर वर्ष खिलौने लाने पड़ते थे और तुम कुछ समय बाद उन खिलौनों को तोड़ दिया करती थी। मेरे पिताजी भी आ चुके थे वह कहने लगे अरे मां बेटी की क्या बातचीत चल रही है। मेरे पिताजी हमारे घर के बाहर लगी पलंग पर बैठ गए और हम लोगों से बात करने लगे उनकी आवाज बड़ी कड़क है पिता जी कहने लगे इस बरस तो मेले में नाटक भी होने वाला है इसकी बड़ी चर्चाएं हैं कि पटना से कुछ कलाकारों की टीम आ रही है। मैं इस बात से बहुत खुश थी क्योंकि मुझे नाटक देखने का बड़ा शौक था और जब भी मेले में नाटक लगता तो मैं उसे देखने जरूर जाया करती। मेला शुरू होने में अब सिर्फ 5 दिन बचे हुए थे लेकिन 5 दिन कैसे निकल गए पता ही नहीं चला। हम लोग जब पहले दिन मेले में गए तो वहां पर काफी धूल और मिट्टी उड़ रही थी तभी कुछ दुकानदार आपस में भिड़ गये वह लोग झगड़ा करने लगे सब लोग तमाशबीन बने हुए देख रहे थे कोई भी उन्हें समझाने के लिए या बीच में छुड़ाने के लिए नहीं गया।
मैं और मेरी सहेलियां भी वहां से चली गई कुछ देर तक हमने देखा लेकिन लोगों को तो जैसे उन लोगों के झगड़े में भी मनोरंजन लग रहा था इसलिए सब लोग देखे जा रहे थे मैं और मेरी सहेलियां वहां से दूर जा चुकी थी। मैंने अपनी सहेलियों से कहा कि आज तो हम लोग घर चलते हैं क्योंकि मुझे नहीं लगता कि आज का दिन कुछ ठीक रहने वाला है। हम लोग अपने घर चले गए मैं जब घर गई तो मेरी मां ने मुझसे पूछा मोनिका तुम घर जल्दी आ गई मैंने कहा वहां पर कुछ लोग आपस में झगड़ा कर रहे थे और सब लोग वहां पर तमाशबीन बने देख रहे थे इसलिए मुझे कुछ ठीक नहीं लगा और मैं घर चली आई। मेरी मां कहने लगी बेटा तुमने बिलकुल ठीक किया अब धीरे धीरे गांव में भी सब लोग लोगों का स्वभाव बदलता जा रहा है आपस में झगड़े बहुत ज्यादा होने लगे हैं पहले सब लोग आपस में बड़े प्रेम से रहा करते थे। मैंने अपनी मां से कहा अब मैं कल ही मेले में जाऊंगी अगले दिन मैं अपनी सहेली रूपा के साथ मेले में गई थी उस दिन नाटक देखने के लिए काफी भीड़ जमा हो चुकी थी। रुपा मुझे कहने लगी लगता है आज बड़ा अच्छा नाटक होने वाला है हम लोग भी जमीन पर बैठे हुए थे और तभी मंच से हमारे गांव के रामु चाचा ने सब लोगों को संबोधित करते हुए कहा बस कुछ देर बाद ही नाटक शुरू होने जा रहा है आप लोगों को बड़ा ही आनंद आएगा। उन्होंने नाटकों के पात्रों का भी परिचय दिया और उसके कुछ देर बाद नाटक शुरू हो गया सब लोग नाटक देखने के लिए बैठे हुए थे। नाटक के पहले पात्र ने मंच पर अपनी जबरदस्त एंट्री से सबको हड़बड़ कर दिया सब लोग बहुत खुश थे और लड़के तो सीटिया बजा कर उस पात्र को जैसे उसके कलाकार सम्मान दे रहे थे और हम लोग नाटक में इतना खो गए कि पता ही नहीं चला कि कब वह तीन घंटे का नाटक खत्म हो गया। सब लोगों ने बड़ी जोरदार ताली बजाई और जितने भी पात्र वहां पर थे सब लोगों ने उनका बड़ा सम्मान किया।
हमारे ही गांव के कुछ चुनिंदा लोगों ने उनके सम्मान में कुछ पैसे भी दिए और अब मैं और मेरी सहेली रूपा अपने घर की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते मैं उसी नाटक मंडली गायक कलाकार से टकरा गई। मैंने जब उसे देखा तो मैंने उसे कहा ओ भैया क्या तुम्हें दिखता नहीं है वह कहने लगा गलती से हो गया आप मुझे माफ कर दीजिए लेकिन तभी रूपा ने मुझे कहा अरे तुम तो वही हो ना जो पटना से आए हुए हो। वह कहने लगे हां मेरा नाम अजय है और मैं पटना में रहता हूं वहीं पर हम लोग रहते हैं। अजय से बात कर के अच्छा लग रहा था और वह काफी देर तक हम लोगों से बात करता रहा। अजय ने हमसे कहा कभी आप पटना आये तो मुझे जरूर मिलेगा। मैंने अजय से कहा ठीक है कभी हमारा पटना आना हुआ तो हम लोग जरूर मिलेंगे रूपा ने अजय से पूछा वैसे आप लोग यहां कितने दिनों तक रहने वाले है। अजय कहने लगा हम लोग तो अभी यहां पर कुछ दिन और रहेंगे। वह लोग हर रोज एक नया नाटक सब लोगों को दिखाना चाहते थे और उन कुछ दिनों में मेरी अजय के साथ बहुत अच्छी बातचीत हो गई।
अजय भी शायद मुझे प्यार करने लगा था उसका प्यार एक तरफा ही था लेकिन मुझे इस बात की चिंता सता रही थी कि कहीं मेरे पिताजी और मां को इस बारे में पता ना चल जाए। गांव के माहौल में कभी भी इस बात की स्वीकार्यता नहीं थी इसलिए मैं काफी डरी हुई थी मैं और अजय ऐसे ही चोरी छुपे मिलने लगे थे। हम दोनों चलते चलते अपने गांव से थोड़ी दूरी पर निकल गए और वहां पर बैठकर हमने काफी देर तक एक दूसरे से बात की अजय के साथ बात कर के मुझे बहुत अच्छा लगा और मुझे ऐसा लगा कि जैसे अजय अपने जीवन में कुछ बड़ा करना चाहता है। मैंने अजय से कहा तुम काफी मेहनती हो तुम जरूर अपने जीवन में आगे बढ़ोगे। अजय कहने लगा मेरी मां भी हमेशा यही कहती है और जब मुझे तुमसे बात करने का मौका मिला तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे तुम्हारे अंदर भी मेरी मां का कोई रूप छुपा हो तुम बिलकुल मेरी मां की तरह बात करती हो वह भी मुझे ऐसे ही समझाती रहती हैं और जिस प्रकार से तुम से मेरी मुलाकात हुई है वह भी किसी इत्तेफाक से कम नहीं है। मुझे भी अजय का साथ पाकर अच्छा लगा लेकिन जब अजय ने यह कहा कि मैं कल पटना लौट जाऊंगा तो मुझे यह बात हुई बुरी लगी। उस दिन मुझे अजय को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मै उसे अपनी बाहों में ले लू लेकिन मैं गांव की एक सीधी-सादी सी लड़की थी इसलिए मेरे अंदर इतनी हिम्मत ना थी परंतु अजय ने हिम्मत दिखाते हुए आखिरकार मुझे गले लगा लिया। जब अजय ने मुझे गले लगाया तो मेरे अंदर से उत्तेजना जागने लगी थी मेरे अंदर से एक करंट सा निकलने लगा। मैं अजय से गले मिलकर बहुत खुश थी जब अजय ने मेरे गुलाब जैसे होठों को अपने होठों से चुंबन किया तो मैं बिल्कुल रह ना सकी। मैंने अजय से कहा तुम मेरे होठों को बड़े अच्छे से चूम रहे हो मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। हम दोनों पास के एक खेत में चले गए वहां कुछ दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए हम दोनों ने खेत में जाकर एक दूसरे को काफी देर तक चुंबन किया जिससे कि हम दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो गए।
जैसे ही अजय ने मेरे स्तनों का रसपान करना शुरू किया तो मुझे थोड़ा शर्म सी आ रही थी मैंने अपनी नजरें झुका ली थी लेकिन मैं अंदर ही अंदर बड़ी खुश थी। अजय का मोटा सा लिंग देखकर मैं पूरी तरीके से उत्तेजित हो चुकी थी पहली बार ही मैंने किसी पुरुष के लंड को अपने हाथों में लिया था मेरे लिए यह बड़ा ही अच्छा था। मैं उसके लंड को अपने हाथों से हिलाती रहती धीरे धीरे में उसके लंड को हिला कर खड़ा करने लगी अजय का लंड एकदम से तन कर खड़ा हो चुका था। वह मेरी योनि में जाने के लिए तैयार था अजय ने मुझे नीचे लेटाते हुए मेरी योनि को चाटना शुरू किया। काफी देर तक अजय मेरी योनि का रसपान करता रहा उसने मेरी योनि से पानी तक निकाल दिया था। जब अजय ने अपने मोटे लंड को मेरी योनि में प्रवेश करवाया तो मैं चिल्ला उठी मुझे बड़ा दर्द होने लगा लेकिन जिस गति से अजय धक्के दिए जा रहा था उससे मेरे मुंह से मादक आवाज निकल जाती और मेरी योनि से खून भी निकल रहा था।
मैं पूरी तरीके से उत्तेजित हो चुकी थी मेरी योनि अब खून से लतपत हो चुकी थी लेकिन जैसे ही मेरी योनि पर लंड का प्रहार होता वैसे ही मेरी योनि में दोबारा से जोश पैदा हो जाता। मुझे बड़ा मजा आ रहा था मेरी योनि में चिकनाई बढ़ती जा रही थी मेरी योनि की चिकनाई मे इतनी ज्यादा बढ़ोतरी हो गई कि मै अजय के लंड की गर्मी को ज्यादा समय तक नहीं झेल सकती थी और जैसे ही मेरी योनि में वीर्य की कुछ बूंदें जाने लगी तो मुझे एहसास हो गया कि मेरी योनि मे वीर्य गिरने वाला है। मुझे गर्मी का एहसास हो चुका था और कुछ ही क्षणों बाद मेरी योनि में वीर्य गिर चुका था जिसके साथ मेरी इच्छा पूरी हो चुकी थी। मेरी चढ़ती हुई जवानी दोबारा से ढल चुकी थी मैंने अपनी योनि को साफ किया तो मेरी योनि से वीर्य अब तक टपक रहा था। मेरी योनि में इतना ज्यादा वीर्य टपक चुका था कि मैंने जब अपने कपड़े पहने तो उसके बाद भी मेरी पैंटी पर वीर्य गिरता जा रहा था।