antarvasna, kamukta रिश्ते की डोर एक मजबूत नीव पर टिकी होती है, यह बात मुझे उस वक्त समझ आई जब मेरी पत्नी ने मेरा साथ छोड़ दिया, मैं जिंदगी भर अपने आप मे इसी बात को सोचता रहा कि आखिरकार उसने ऐसा क्यों किया लेकिन मुझे तो अपनी गलती का एहसास बहुत देर में हुआ और जब मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ तो तब तो बहुत देर हो चुकी थी। मैंने अपनी पत्नी को कभी प्यार ही नहीं दिया उसे मैंने हमेशा तकलीफ दी जिस वजह से उसने मेरा साथ छोड़ दिया, मुझे जब इस बात का एहसास हुआ तो मुझे लगा कि शायद अब बहुत देर हो चुकी है तब तक मेरी पत्नी ने मुझ से अलग होने का निर्णय ले लिया था और वह मुझसे अलग हो गई।
जब उसने मुझसे यह बात कही थी तो मुझे उस वक्त बहुत बुरा लगा मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि जैसे वह मेरा साथ नहीं छोड़ सकती लेकिन उसने मेरा साथ छोड़ दिया, मैं अपने जीवन में अकेला हो चुका था मेरे माता पिता को भी इस बात का बहुत ज्यादा गुस्सा था इसलिए वह मुझसे बात नहीं किया करते थे फिर मैंने भी सोचा कि मुझे अब किसी और शहर चले जाना चाहिए इसलिए मैंने मुंबई जाने की सोची, मैं जब मुंबई गया तो मुझे सिर्फ मेरे ऑफिस के दोस्त ही पहचानते थे, मुझे मुंबई जाते ही नौकरी मिल गई और उसके बाद मैं अपने जीवन में व्यस्त हो गया लेकिन मेरे जीवन में बहुत अधूरापन था और कई बार ऐसा लगता था कि काश कोई मेरे पास होता उस वक्त मुझे मेरी पत्नी की बहुत याद आती, मुझे ऐसा लगता कि जैसे मैंने उसके साथ बहुत गलत किया, मैंने उससे बात करने की कोशिश की लेकिन उससे मेरी बात हो ही नहीं पाती थी उसके परिवार वाले मुझसे उसकी बात करवाते ही नही थे और ना ही मेरे पास उसका कोई दूसरा नंबर था, मैं सिर्फ उससे मिलकर एक बार उससे माफी मांगना चाहता था क्योंकि मेरी वजह से उसके साथ काफी बुरा हुआ।
मैं हमेशा की तरह ही अपने ऑफिस के लिए जा रहा था जब से मेरी पत्नी और मेरे बीच में यह सब समस्याएं शुरू हुई उसके बाद से मैं बहुत कम बात किया करता, मैं हमेशा की तरह ही बस से अपने ऑफिस जा रहा था मैं जिस सीट पर बैठा था वह महिला सीट थी बस चल चुकी थी और तभी एक लड़की सामने से आई और वह मुझे कहने लगी सर यह लेडीस सीट है, मैं चुपचाप खड़ा हो गया और उस लड़की को मैंने बैठने के लिए कहा वह लड़की बैठ गई और मैंने जब उसके चेहरे की तरफ देखा तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे मुझे उससे बात करनी चाहिए लेकिन मैं किसी अनजान शख्स से कैसे बात कर सकता था और यही सोचते हुए मैंने उससे बात तो नहीं की लेकिन जब वह उतरी तो मैं भी उसके साथ ही उतर गया मेरा ऑफिस वहां से कुछ दूरी पर ही था और मैं उस दिन अपने घर से ऑफिस के लिए जल्दी ही निकल पड़ा था इसलिए मैं काफी जल्दी ऑफिस पहुंच गया था। मैं उसके पीछे पीछे जा रहा था उसे लगा कि शायद मैं उसका पीछा कर रहा हूं वह एकदम से रुकी और पीछे पलटते हुए मेरी तरफ घूर कर देखने लगी मैं भी एकदम से खड़ा हो गया और उसकी तरफ ध्यान से देखने लगा वह कहने लगी कि आप क्या मेरा पीछा कर रहे हैं? मैंने उसे कहा नहीं मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा। वह मुझे कहने लगी देखो जनाब आप मेरा पीछा कर रहे हैं और मैं बिल्कुल यह चीज बर्दाश्त नहीं करूंगी, मैंने उसे कहा मैंने जब तुम्हें देखा तो तुम्हारे अंदर मुझे एक अलग सी बात नज़र आई इसलिए सोचा कि तुमसे बात करूं, वह थोड़ा कंफर्टेबल हो गई थी और मुझे कहने लगी आपका नाम क्या है? मैंने उसे अपना नाम बताया और फिर मैंने भी उसका नाम पूछा उसका नाम अंकिता है। वह मुझे कहने लगी देखिए मैंने ना तो आपको कभी आज से पहले देखा है और ना ही मैं आपको जानती हूं लेकिन आप जिस प्रकार से मेरा पीछा कर रहे थे वह बिल्कुल भी उचित नहीं है, मैंने अंकिता से कहा मुझे पता है कि मैं तुम्हारा पीछा कर रहा था लेकिन यह बिल्कुल गलत है मैंने उससे कहा मैं तुमसे सिर्फ दो मिनट बात करूंगा, वह कहने लगी हां कहिए, मैंने उसे कहा मुझे तुम अच्छी लगी तो सोचा मैं तुमसे बात करूं मैं तुम्हें देख कर अपने आप को रोक ना सका, अंकिता कहने लगी लेकिन आपको मुझ में ऐसा क्या लगा जो आप मेरे पीछे पीछे चले आए, मुझे उस वक्त उसे कुछ बताने का मन नहीं था लेकिन उससे जितनी देर भी मैं बात कर सका मुझे बहुत अच्छा लगा और मैं उसके बाद अपने ऑफिस के लिए निकल पड़ा।
मैं अपने ऑफिस पहुंचा तो उस दिन हमारे ऑफिस में मीटिंग थी मेरे दिमाग में सिर्फ अंकिता का ही ख्याल आ रहा था क्योंकि काफी समय बाद मैंने किसी लड़की को देखा था तो मुझे बहुत अच्छा लगा लेकिन मुझे क्या पता था कि कुछ ही दिनों बाद अंकिता से मेरी मुलाकात उसी के घर में हो जाएगी। हमारे ऑफिस में ही एक लड़का काम करता है उससे भी मेरी ज्यादा जान पहचान नहीं थी लेकिन उसने अपने घर पर एक छोटा सा प्रोग्राम रखा था जिस के लिए मुझे और मेरे ऑफिस के सब लोगों को उसके घर पर जाना था, मैं जब उनके घर पर गया तो मैंने देखा उसके घर पर काफी भीड़ है मैंने जब वहां अंकिता को देखा तो मैं उसे देखता ही रह गया उसकी नजर भी मुझ पर पड़ी तो उसने मुझे पहचान लिया था। वह मेरे पास आकर कहने लगी कि क्या आप भी भैया के ऑफिस में काम करते हैं, मैंने अंकिता से कहा हां मैं तुम्हारे भैया के ऑफिस में ही काम करता हूं, यह भी बड़ा अजीब इत्तेफाक था कि उस दिन अंकिता से मेरी मुलाकात हो गई, उसके बाद यह मुलाकात अब आगे बढ़ने लगी थी और अंकिता से मैंने उसका नंबर भी ले लिया था अंकिता और मेरे बीच में अब बहुत देर तक फोन पर बात हुआ करती। एक दिन अंकिता और मैं साथ में घूमने के लिए निकले तो उस दिन मैंने अंकिता के साथ काफी अच्छा समय बिताया था, तभी अंकिता ने मेरे पर्सनल लाइफ के बारे में पूछ लिया मुझे ऐसा लगा कि जैसे उसने मेरी दुखती पर हाथ रख दिया।
मैंने पहले तो उसे कुछ बताने की नहीं सोची लेकिन जब उसने मुझसे पूछा कि आपको मुझे बताना ही पड़ेगा तो मैंने अंकिता को बताया कि मेरी शादी हो चुकी है लेकिन अब मेरी पत्नी मुझसे अलग रहती है, मेरी कुछ गलतियों की वजह से वह मुझसे अलग रहने चली गई। अंकिता को मैंने अपने जीवन की सारी बात बता दी थी और उसे यह भी पता चल चुका था कि मेरे जीवन में बहुत अकेलापन है, अंकिता कहने लगी आप चिंता ना करें अब से मैं आपका पूरा साथ दूंगी, अंकिता ने जब मेरे हाथ को पकडा तो मुझे ऐसा लगा कि उसने मेरा हाथ जीवन भर के लिए थाम लिया है मुझे उस वक्त बहुत अच्छा लगा और ऐसा लगा कि जैसे मेरे अंदर दोबारा से जान आ गई हो और कितने समय बाद मैंने अपने आप को बहुत खुश महसूस पाया था। अंकिता के साथ मैं जब भी होता तो मुझे बहुत अच्छा लगता अंकिता मेरी हर चीज का ध्यान रखने लगी थी और जैसे उसके बिना मेरे जीवन में कोई भी काम हो ही नहीं सकता था मैं उस पर पूरा निर्भर हो चुका था और अंकिता भी मेरे साथ अपने आप को बहुत अच्छा महसूस कर रही थी। अंकिता मेरे साथ बहुत ज्यादा खुश थी वह मेरे घर पर भी आने लगी थी। एक दिन मेरी तबीयत ठीक नहीं थी अंकिता उस दिन घर पर आ गई वह कहने लगी आपने मुझे बताया क्यों नहीं। मैंने अंकिता से कहा मुझे भी नहीं पता था कि मेरी तबीयत ना खराब हो जाएगी लेकिन अब मैं ठीक हूं। अंकिता कहने लगी मैं आपके लिए चाय बना देती हूं अंकिता ने मेरे लिए चाय बनाई हम दोनों साथ में बैठकर चाय पीने लगे तभी मेरे हाथ से चाय का कप गिर पड़ा वह अंकिता के कपड़ों में जा गिरा अंकिता के कपड़े खराब हो चुके थे। मैंने अंकिता से कहा सॉरी मेरी वजह से तुम्हारे कपड़े खराब हो गए तुम कपड़े चेंज कर लो। अंकिता ने मेरी शर्ट पहन ली उसने अपने कपड़े सुखाने के लिए रख दिए अंकिता मेरे सामने बैठी हुई थी उसकी गोरी और चिकनी जांघ देखकर मेरा मन सेक्स करने का होने लगा। मैंने अंकिता से कहा तुम्हारे पैर तो बडे ही मुलायम है क्या मैं तुम्हारे पैरों पर अपने हाथ को रख सकता हूं। मैंने अंकिता के पैरों पर अपने हाथ को रख दिया जब मैंने उसकी जांघ पर अपने हाथ को रखा तो वह उत्तेजित होने लगी उसका शरीर मचलने लगा अंकिता पूरे गरम हो चुकी थी।
मैंने अपने हाथ को बढ़ाते हुए उसकी चूत की तरफ किया तो उसकी चूत गिली थी मैने उसकी चूत को चाटना शुरू कर दिया। उसको मैं बड़े अच्छे से जा रहा था काफी समय बाद मुझे चूत चाटने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। मैंने जब अंकिता को तेजी से धक्के मारना शुरू किया तो उसकी चूत से खून निकलने लगा था उसकी चूत से इतना तेज खून निकल रहा था मुझे उसे धक्का देने में भी बड़ा मजा आता वह मेरा पूरा साथ दे रही थी। मैंने अंकिता से कहा तुमने आज से पहले कभी किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश नहीं की। अंकिता कहने लगी मुझे आज तक किसी को देखकर ऐसा लगा ही नहीं लेकिन जब तुमने मेरी जांघ पर हाथ रखा तो मुझे लगा मुझे आज तुम्हारे साथ सेक्स कर लेना चाहिए। अंकित मेरे साथ बड़े मजे से सेक्स करने लगी मैंने अंकिता की चूत बहुत देर तक मारी जब मेरा वीर्य पतन होने वाला था तो मैंने अंकिता के मुंह के अंदर अपने वीर्य को गिरा दिया। उसने मेरे सारे वीर्य को अपने अंदर समा लिया उसके बाद हम दोनों साथ में बैठ गए। अंकिता मेरी बाहों में लेटी हुई थी मुझे बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि मेरे जीवन का जो खालीपन था वह दूर होने लगा था। अंकिता मेरा बहुत ध्यान रखने लगी मुझे जब भी उसकी जरूरत होती तो वह तुरंत ही मेरे पास आ जाती हम दोनों के बीच अब कुछ भी छुपा नहीं था इसलिए हम दोनों का जब भी मन होता हम दोनों एक दूसरे से मिल लिया करते, मैं अंकिता के साथ सेक्स कर लिया करता हूं।