Antarvasna, hindi sex story एडमिशन का दौर शुरू हो चुका था और मैं भी चाहता था कि मेरे बच्चे का दाखिला अच्छे स्कूल में हो लेकिन अच्छे स्कूलों की मोटी फीस तो जैसे एक आम आदमी के लिए चुका पाना बहुत ही मुश्किल था। मैंने अपने ससुर जी से जब इस बारे में बात की तो वह कहने लगे बेटा हम लोग भी कोशिश करेंगे कि कितना पैसा हम जुटा पाएंगे तुम्हें तो मालूम ही है कि मैं एक सरकारी क्लर्क से रिटायर हुआ था मेरी जो थोड़ी बहुत पेंशन आती है उससे हमारे घर का खर्चा चल जाता है और मैं फिर भी थोड़ा हिम्मत जुटाकर तुम्हें पैसे देने की कोशिश करूंगा। मेरे ससुर जी सरकारी स्कूल में क्लर्क थे और मैं चाहता था कि उनसे कुछ पैसे की मदद ले ली जाए हालांकि पहले तो मैंने इस बारे में नहीं सोचा था लेकिन जब मुझे मेरी पत्नी ने कहा कि आपको पापा से इस बारे में बात करनी चाहिए तो मैंने भी अपनी पत्नी की बात मान ली और अपने ससुर से बात करने के बारे में सोच लिया।
मैं चाहता था कि उनसे मैं बात करूँ और मैंने उनसे बात कर ली जब मैं घर लौटा तो मेरी पत्नी कि नजर मेरी तरफ ही थी वह मुझसे पूछने लगी पापा ने क्या कहा। उसके स्वर उत्सुकता से भरे हुए थे और मैं उसकी तरफ़ देखकर कहने लगा पापा ने हामी तो भर दी है लेकिन अभी उन्होंने कुछ नहीं कहा है। मेरी पत्नी चाहती थी कि हम अपने बच्चे का एडमिशन अच्छे स्कूल में करवाएं और उसके लिए मैंने भी अपने पास कुछ पैसे बचाये थे। कुछ ही दिनों में लता के पिताजी ने कहा कि मैं तुम्हारी पैसे से थोड़ी बहुत मदद कर देता हूं, मेरे लिए तो यह कोई सहारा जैसा था और उन्होंने मुझे कुछ पैसे दे दिए मैंने उससे अपने बच्चे का दाखिला एक बड़े स्कूल में करवा दिया। हालांकि वहां पर सारे बड़े घराने के बच्चे आते थे लेकिन हिम्मत करके मैंने भी अपने बच्चे का दाखिला वहां करवा ही दिया लता इस बात से बहुत खुश थी लता कहने लगी कि हम लोग पापा मम्मी से मिल आते हैं। मैंने लता से कहा ठीक है हम लोग वहां चलते हैं और हम लोग लता के माता-पिता से मिलने के लिए चले गए जब हम लोग उनसे मिलने के लिए गए तो वहां पर लता के ममेरे भाई आए हुए थे और उनके साथ उनकी पत्नी थी।
मेरा उनके साथ इतना ज्यादा परिचय तो नहीं था लेकिन लता ने मेरा उनसे परिचय करवाया और कहा की यह मेरे मामा जी के लड़के हैं उनका नाम सुबोध था और उनकी पत्नी का नाम आशा। वह दोनों ही हमसे कहने लगे यदि आपके घर के आस पास कोई घर किराए पर मिल जाए तो हमें बता दीजिएगा सुबोध का ट्रांसफर दिल्ली में हो चुका था तो वह चाहते थे की उनके लिए कोई घर देख लिया जाए। मैंने कहा ठीक है मैं आपको बता दूंगा और उस दिन लता अपने माता पिता से मिलकर बहुत खुश थी सुबोध के साथ कुछ ही देर की दोस्ती बहुत गहरी हो गई। हम लोग शाम को अपने घर लौट आए मैंने आस पड़ोस में अपने दोस्तों को पूछना शुरू किया तो किसी ने मुझे गोयल जी के बारे में बताया उनसे मेरा इतना संपर्क नहीं था लेकिन जब मैं गोयल जी से मिलने के लिए गया तो मैंने उन्हें बताया कि मैं यहीं पास में रहता हूं। गोयल जी कहने लगे मैंने आपको देखा तो है मैंने उनसे पूछा साहब क्या आपके घर पर कोई कमरा खाली होगा वह कहने लगे आप आकर देख लीजिए यदि आपको अच्छा लगे तो आप बता दीजिएगा। मैंने उन्हें कहा दरअसल मेरी पत्नी के ममेरे भाई को रहने के लिए दो कमरों का सेट चाहिए था यदि आपके पास वह उपलब्ध है तो मैं उन्हें बुला देता हूं वह कहने लगे हां क्यों नहीं आप देख लीजिए। मैंने जब उनके घर के ऊपर वाले फ्लोर को देखा तो मुझे अच्छा लगा और मैंने लता से कहा तुम सुबोध से कह देना कि वह देखने के लिए आ जाए लता कहने लगी ठीक है। कुछ समय बाद सुबोध और आशा घर देखने के लिए आए तो उनको घर काफी अच्छा लगा और उन लोगों ने गोयल जी से रहने की बात कर ली अब वह लोग हमारे पड़ोस में ही रहने वाले थे। मैंने ही उनके घर के सामान को शिफ्ट करने में उनकी मदद करी और जब उनका घर का सामान शिफ्ट हो चुका था तो उस दिन उन लोगों ने हमारे घर पर ही रात का डिनर किया।
सब लोग थकान से चूर हो चुके थे क्योंकि घर की साफ सफाई में बहुत समय लग गया था लता ने जैसे तैसे खाना तो बना ही लिया था क्योंकि उसका साथ आशा ने दिया और उन दोनों ने रात का भोजन बना दिया था। हम लोगों ने साथ में भोजन किया तो सुबोध मुझे कहने लगे अब हम लोग चलते हैं वह लोग जा चुके थे और उसके बाद उन लोगों का अक्सर हमारे घर पर आना जाना था। लता को भी आशा के रूप में अपना साथी मिल चुका था क्योंकि लता भी काफी अकेली हो जाया करती थी इसलिए उसे भी आशा के रूप में एक दोस्त मिल चुका था। आशा काफी पढ़ी लिखी थी तो एक दिन मैंने आशा को कहा कि आप ट्यूशन क्यों नहीं पड़ा लेती वह कहने लगी हां बिल्कुल ठीक कह रहे हैं मैंने भी इस बारे में सुबोध से बात की थी तो वह भी मुझे यही कह रहे थे। लता ने भी कहा कि भाभी आपको ट्यूशन पढ़ा लेना चाहिए इससे आपको अच्छा लगेगा और घर में दो पैसे भी आ जाया करेंगे। आशा भाभी ने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था अब वह ट्यूशन पढ़ाती थी तो हमारे घर पर कम ही उनका आना होता था लेकिन फिर भी वह समय निकालकर दिन में एक बार तो आ ही जाती थी। मेरा और सुबोध का उठना बैठना भी काफी हो चुका था हम लोग भी एक दूसरे के साथ खुलकर बातें करने लगे थे मुझे नहीं मालूम था कि सुबोध शराब पीते हैं। एक दिन मैंने सुबोध से पूछ लिया तो वह कहने लगे हां मैं ड्रिंक कर लेता हूं तो उसी के साथ हम लोगों ने एक दिन घर पर बैठने का निर्णय किया और उस समय शराब के नशे में सुबोध मुझसे अपनी परेशानी बयां करने लगे।
उनके अंदर जैसे परेशानियों का भंडार था वह कहने लगे कि उनके भैया और उनके बीच में जमीनी विवाद काफी समय से चल रहा है जिस वजह से वह काफी परेशान हो चुके हैं और अपनी नौकरी पर भी ध्यान नहीं दे पाते। मैंने उन्हें कहा कोई बात नहीं सब सही हो जाएगा उन्हें उस दिन मुझसे बात कर के अच्छा लगा और पहली बार ही उन्होंने मुझसे अपने घर के बारे में बात कही थी इससे पहले उन्होंने कभी भी मुझसे इस बारे में नहीं बताया था। जब उन्होंने मुझे इस बारे में बताया तो मैं उन्हें कहने लगा कि आप चिंता ना कीजिए सब ठीक हो जाएगा और वह उसके बाद घर चले गए। मैंने जब यह बात लता को बताई तो वह कहने लगी हां सुबोध भैया और गौतम भैया के बीच में काफी समय से जमीन का विवाद चल रहा है जिस वजह से उन दोनों भाइयों के बीच बिल्कुल भी नहीं बनती है। मुझे जब यह बात लता ने बताई तो मुझे अजीब सा महसूस हुआ क्योंकि मुझे तो लगता था की सुबोध और उनके परिवार में सब कुछ ठीक होगा परंतु उस दिन जब मुझे लता ने यह सब बात बताया तो मैं हैरान रह गया। मैने लता से कहा क्या उन्होंने इसके लिए कुछ नहीं किया तो वह कहने लगी उन्होंने इस बारे में काफी बात की लेकिन अभी तक उनका जमीनी विवाद खत्म नहीं हो पाया शायद इसी वजह से सुबोध परेशान रहने लगे थे और उनका तनाव इतना अधिक होने लगा कि आशा भी परेशान रहने लगी थी। उनके झगड़े साफ तौर पर दिखाई देने लगे थे सुबोध आशा को बेवजह डांट दिया करते थे जिससे कि वह भी बहुत उदास रहने लगी थी। एक दिन लता ने मुझे कहा कि मैं आज पापा मम्मी से मिलने जा रही हूं और बच्चों को भी अपने साथ लेकर जा रही हो तो मैंने लता से कहा ठीक है लता जा चुकी थी।
आशा उस दिन घर पर आई तो वह कहने लगी आज लता नहीं दिखाई दे रही तो मैंने आशा से कहां वह पापा मम्मी से मिलने के लिए गई है काफी दिन हो गए थे वह मिल नहीं पाई थी। आशा कहने लगी मैं भी चलती हूं लेकिन मैंने आशा को रोक लिया और कहा तुम अभी जाकर क्या करोगी बैठ जाओ। मेरी नजर तो पहले से ही आशा पर थी और आशा को भी क्या मालूम था कि मैं उसके दुखती रथ पर हाथ रख दूंगा। जब मैंने उसे कहा सुबोध के बारे में बताओ तो वह बहुत ही ज्यादा परेशान हो गई और कहने लगी मैं काफ़ी परेशान हो चुकी हूं। मैंने भी आशा की जांघ पर हाथ रखा और उसे सहलाना शुरू कर दिया जिस प्रकार से मै उसकी जांघ को सहला रहा था उससे वह भी मचलने लगी थी वह बिल्कुल भी रह ना सकी। मैंने आशा से कहा मैं तुम्हारी योनि के अंदर अपने लंड को डालना चाहता हूं और तुम्हारे साथ में शारीरिक संबंध बनाना चाहता हूं।
वह भी मान गई और कहने लगी ठीक है आपको जो करना है कर लीजिए। हम दोनों की रजामंदी हो चुकी थी जब हम लोग बेडरूम में गए तो वहां पर मैने बेडरूम की बत्ती बुझा दी। बेडरूम में मैंने पूरा रोमांटिक माहौल पैदा कर दिया अब आशा मेरी बाहों में आ गई। मैंने आशा के गुलाबी होठों को अपने होठों में लिया तो वह भी मुझे ऐसे चुंबन दे रही थी जैसे कि ना जाने कितने दिनों से भूखी बैठी हो और आखिरकार उसने मुझे काफी देर तक किस किया। जब वह मुझे किस करती तो मुझे भी अच्छा लगता जैसे ही मैंने आशा के स्तनो पर अपनी जीभ को लगाया तो वह पूरी तरीके से मचलने लगी और मुझे भी अच्छा लगने लगा परंतु जब मैंने अपने लंड को आशा की योनि पर लगाया तो वह मुझे कहने लगी तुम अंदर डालो। मैंने भी अंदर की तरफ धक्का देते हुए आशा की योनि में अपने लंड को प्रवेश करवा दिया। उसकी योनि के अंदर मेरा लंड जा चुका था मैं बड़ी तेज गति से धक्के दिए जा रहा था। मैंने काफी देर तक उसे धक्के मारे जब हम दोनों एक दूसरे के बदन की गर्मी को ना झेल सके तो 10 मिनट के बाद मेरा वीर्य बाहर निकल आया।