स्वामी जी का आश्रम भाग ३

जब मुझे होश आया तो भी मेरा सर घूम रहा था, लेकिन अब में अपने हाथ पैर घुमा पा रही थी, मेरे पूरे शरीर में दर्द हो रहा था और शरीर अकड़ गया था. दिल कर रहा था कि कोई मुझे मालिश कर देता, लेकिन वहाँ ऐसा कौन मिलता? में अपनी हालत पर रो रही थी और मुझे इतना भी होश नहीं था कि में उस वक़्त तक नंगी ही थी.

फिर मैंने अपनी चूत को सहलाया तो दर्द से राहत मिली. चूत के होंठ फूल गये थे और दर्द भी था और चूत के ऊपर स्वामीजी का वीर्य लगा हुआ था, जो अब बहुत हद तक सूख गया था. स्वामीजी के मोटे लंड ने मेरी चूत का भरता बना दिया था और में अपनी चूत को मसलने लगी और मुझे कुछ आराम सा मिला में और चूत सहलाने लगी.

फिर मैंने एक उंगली को चूत के छेद में घुसा दिया, चूत से स्वामीजी का वीर्य बह रहा था और मेरी उंगली अंदर तक चली गयी. फिर मुझे इतना मज़ा आने लगा कि में उंगली से चूत की चुदाई करने लगी और मेरी आखों के सामने स्वामीजी की चुदाई घूमने लगी और में पूरी तरह मग्न होकर योनि में उंगली कर रही थी,

तभी हल्की सी आवाज़ हुई और में एकदम चौंक सी गयी, मेरा पानी निकलने वाला था और मैंने चूत को सहलाना जारी रखा और आँख खोला तो क्या देखती हूँ? कि स्वामीजी का एक शिष्य दरवाजे पर खड़ा मुझे देखा रहा था और उंगली से चूत को सहलाने और चोदने से मुझे बहुत मज़ा आने लगा था और जिससे मेरी आवाज़ निकल गई और स्वामीजी का वो शिष्य पास के कमरे से उठकर मेरे कमरे में आ गया.

फिर वो मुझे नंगी हालत में देखकर घबरा गया, लेकिन जब उसकी नज़र मेरे नंगे पैरों, जांघो की तरफ गई तो वो देखता ही रह गया और फिर मेरी चमकती हुई चूत उसे अपनी और खींच रही थी, लेकिन में भी बिना रुके उंगली तेज़ी से अपनी चूत में अंदर बाहर करती रही और वो दिन मेरे लिए बहुत खास था, क्योंकि आज पहली बार मुझे किसी पराए पुरुष ने चोदा था और अब पहली बार एक पराया पुरुष मुझे अपनी उंगली से चूत चोदते हुए नंगी देख रहा था और अब मुझे भी मज़ा आने लगा था.

फिर मैंने अपने पैरों को और फैला दिया और उसे अपनी चूत के दर्शन कराती रही और कुछ देर बाद वो बोला कि आप स्वामीजी की प्रिय भक्त है और आपको ऐसा नहीं करना चाहिए, बाहर स्वामीजी आपकी प्रतीक्षा कर रहे है. फिर मैंने कहा कि स्वामीजी के प्रिय भक्त आपको आदेश देती है कि मुझे कुछ समय दे, आप वहाँ पर क्यों खड़े हो? आओ और मेरे साथ यहाँ बैठकर देखो.

फिर वो मेरे करीब आ गया और ध्यान से मेरी चूत को देखने लगा और उसी वक़्त में ज़ोर से चिल्लाई, उह्ह्ह्ह उूईईईईईई माँआआआ में गई और में शरीर को ढीला करके झड़ गयी. फिर यह नज़ारा देखकर वो शिष्य जिसका नाम विशेष था, उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी और वो अपना हाथ अपने लंड पर रगड़ने लगा.

फिर मैंने उसकी धोती की तरफ देखा तो उसका लंड धोती से बाहर झाँक रहा था. में उसका खड़ा हुआ लंड देखकर और गरम होने लगी और विशेष के साथ बेड पर बैठ गयी और मुझे उसका लंड पकड़ने का दिल करने लगा, उसकी और मेरी साँसे तेज़ चलने लगी और जबकि में आज दो बार झड़ चुकी थी. फिर मैंने अपनी आँखे बंद की और अपना चेहरा विशेष की तरफ बढ़ाया, जिससे उसे मेरे मन की बात पता चले.

फिर उसने मेरा इशारा समझा और अपने होंठ मेरे होंठ पर रख दिए और हम दोनों एक दूसरे के होंठ चूमने और चूसने लगे और उसने अपनी जीभ को मेरे मुहं में घुसा दिया और में मज़े से उसे चूसने लगी और मेरे पति अरुण ने कभी मुझसे ऐसे किस नहीं किया था. फिर उसका हाथ मेरे बूब्स पर पहुँच गया और में एकदम शांत होकर उसके अगले कदम की प्रतीक्षा करने लगी और उसकी जीभ चूसती रही.

फिर कुछ देर के बाद विशेष ने मेरे बूब्स को मसलना शुरू कर दिया, मेरे निप्पल एकदम कड़क हो गये और तन गये. फिर विशेष ने अपना मुहं मेरे होंठ से हटाया और मेरे निप्पल को चूसने लगा और वो पाँच मिनट तक मेरे निप्पल को चूसता रहा, कभी एक निप्पल तो कभी दूसरा निप्पल.

फिर मैंने उसका सर पकड़ा हुआ था और वैसा महसूस कर रही थी, जैसा कि एक माँ अपने बच्चे को दूध पिलाते वक़्त महसूस करती है और उसकी इन हरक़तो से में अपने शरीर में उठता हुआ दर्द भूल सी गयी और उसकी आगोश में खो गयी. तभी विशेष ने अपने मुहं को मेरे बूब्स से अलग किया और में उसकी तरफ प्यासी निगाहों से देखने लगी.

फिर उसके बाद वो मेरे सामने खड़ा हो गया और उसने अपनी धोती को खोलकर अलग कर दिया, वो अब मेरे सामने नंगा खड़ा था और उसका फड़फड़ाता हुआ लंड मेरी आँखो के सामने हिचकोले खा रहा था. फिर में एक टक उसके मोटे लंड को देखती रही और मेरा दिल किया कि उसे मुहं में लेकर चूस लूँ. फिर उसने अपने लंड को मेरे मुहं के सामने करके कहा कि इसको चूसो, ले लो इसे अपने मुहं में और छू लो इसे, बहुत मज़ा आएगा. दोस्तों पहले तो मुझे बहुत अजीब सा लगा कि इतनी गंदी चीज़ को में मुहं में कैसे लूँ?

मैंने अपना मुहं सिकोड़कर कहा कि लेकिन यह तो गंदा होता है, में इसे मुहं में नहीं ले सकती. फिर विशेष बोला कि तुम इसको एक बार मुहं में लो तो ऐसा मज़ा आएगा कि तुम लंड को मुहं से निकालने को तैयार ही नहीं रहोगी और देखो यह कैसे फनफ़ना रहा है.

फिर विशेष ने अपने लंड को मेरे मुहं से लगा दिया और में उसको मुहं में लेकर चूसने लगी, शायद स्वामीजी ने जो दवा पिलाई थी, उसका असर अभी तक बाकी था. विशेष को बहुत मज़ा आ रहा था और उसके मुहं से आवाज़ें निकलने लगी, उह्ह्ह्ह और ज़ोर से हाँ और ज़ोर से और मेरी चूत से भी पानी निकल रहा था, यह सोच सोचकर कि में पहली बार किसी का लंड चूस रही थी और वो भी एक पराए मर्द का.

फिर विशेष ने मेरा सर पकड़ लिया और धक्के मारने लगा और विशेष मेरे मुहं में अपने लंड को अंदर बाहर करने लगा और तीन मिनट के बाद मुझे उसके लंड में अजीब सी सिहरन महसूस होने लगी और में समझ गयी कि अब वो पानी छोड़ेगा और में अपने मुहं से उसका लंड हटाने लगी, लेकिन विशेष ने मुझे ऐसा करने नहीं दिया और उसने मेरा सर दोनों हाथों से पकड़ रखा था, उसका लंड मेरे मुहं में ही रहा और वो झड़ने लगा.

में उसके लंड का वीर्य पीना नहीं चाहती थी, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और उसने मेरे मुहं में वीर्य का फव्वारा ज़ोर से छोड़ा और उसके लंड से पानी निकलकर मेरे मुहं में भरने लगा और उसके वीर्य का स्वाद उतना बुरा नहीं था. फिर मैंने लंड पर होंठो को दबा लिया और उसका सारा पानी मेरे मुहं में चला गया और में पी गयी. उसके लंड का पानी पीने के बाद में दोबारा से उसके लंड को चूसने लगी, क्योंकि मेरा मन नहीं भरा था. हे भगवान में एक ही दिन में सती सावित्री नारी से एकदम हलकट हसीना बन गयी थी, पता नहीं स्वामीजी ने दूध में मिलाकर मुझे क्या पिलाया था.

फिर कुछ देर बाद विशेष ने कहा कि अब तुम लेट जाओ, में तुम्हारी चूत चूसूंगा, इतनी मस्त चूत बहुत कम लोगों को नसीब होती है. फिर में पलंग पर लेट गई और विशेष ने मेरे पैरों को फैलाया, वो मंत्रमुग्ध सा मेरी चूत को देख रहा था

 

(TBC)…

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